♈ दिनांक – 07 अक्टूबर 2023
♉ दिन – शनिवार
♊ विक्रम संवत – 2080 (गुजरात – 2079)
♋ शक संवत -1945
♌ अयन – दक्षिणायन
♍ ऋतु – शरद ॠतु
♎ मास – आश्विन (गुजरात एवं महाराष्ट्र अनुसार भाद्रपद)
♏ पक्ष – कृष्ण
♐ तिथि – अष्टमी दिन 08:08 तक तत्पश्चात नवमी
♑ नक्षत्र – पुनर्वसु रात्रि 11:57 तक तत्पश्चात पुष्य
♒ योग- शिव प्रातः 8 अक्टूबर को 06:03 तक तत्पश्चात सिद्ध
❌ राहुकाल -प्रातः 08:58 से 10:26 बजे तक
🌞 सूर्योदय-06:01
🌤️ सूर्यास्त- 17:47
👉 दिशाशूल- पूर्व दिशा में
🚩 व्रत पर्व विवरण – अविधवा नवमी,नवमी का श्राद्ध,सौभाग्यवती का श्राद्ध
💥 विशेष – अष्टमी को नारियल का फल खाने से बुद्धि का नाश होता है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-34)
💥 ब्रह्म पुराण’ के 118 वें अध्याय में शनिदेव कहते हैं- ‘मेरे दिन अर्थात् शनिवार को जो मनुष्य नियमित रूप से पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उनके सब कार्य सिद्ध होंगे तथा मुझसे उनको कोई पीड़ा नहीं होगी। जो शनिवार को प्रातःकाल उठकर पीपल के वृक्ष का स्पर्श करेंगे, उन्हें ग्रहजन्य पीड़ा नहीं होगी।’ (ब्रह्म पुराण’)
💥 शनिवार के दिन पीपल के वृक्ष का दोनों हाथों से स्पर्श करते हुए ‘ॐ नमः शिवाय।’ का 108 बार जप करने से दुःख, कठिनाई एवं ग्रहदोषों का प्रभाव शांत हो जाता है। (ब्रह्म पुराण’)
💥 हर शनिवार को पीपल की जड़ में जल चढ़ाने और दीपक जलाने से अनेक प्रकार के कष्टों का निवारण होता है ।(पद्म पुराण)
🛕 सर्वलाभ की कुंजी 🌷
👉🏻 कैसा भी बीमार व्यक्ति हो, उसको हरिनाम की, ‘हरि ॐ’ की साधना दे दो, चंगा होने लगेगा | बिल्कुल पक्की बात है !
👉🏻 आपको स्वस्थ रहना है तो भी भगवान का नाम, प्रसन्न तथा निरहंकारी रहना है तो भगवान का नाम, उद्योगी एवं साहसी होना है तो भगवान का नाम और पूर्वजों का मंगल करना है तो भी भगवान का नाम….|
🛕 पुष्य नक्षत्र योग
➡ 08 अक्टूबर 2023 रविवार को सूर्योदय से रात्रि 02:45 (09 अक्टूबर 02:45 AM) तक रविपुष्यामृत योग है ।
🚩 १०८ मोती की माला लेकर जो गुरु का जप करता है, श्रद्धापूर्वक तो २७ नक्षत्र के देवता उस पर खुश होते हैं और नक्षत्रों में मुख्य है पुष्य नक्षत्र, और पुष्य नक्षत्र के स्वामी हैं देवगुरु बृहस्पति | पुष्य नक्षत्र समृद्धि देनेवाला है, सम्पति बढ़ानेवाला है | उस दिन बृहस्पति का पूजन करना चाहिये | मन ही मन ये मंत्र बोले –
ॐ बृं बृहस्पतये नमः|…… ॐ बृं बृहस्पतये नमः :हल्दी से से स्वस्तिक बनाकर घर में रखें |
🛕 रविपुष्यामृत योग
🚩 ‘शिव पुराण’ में पुष्य नक्षत्र को भगवान शिव की विभूति बताया गया है | पुष्य नक्षत्र के प्रभाव से अनिष्ट-से-अनिष्टकर दोष भी समाप्त और निष्फल-से हो जाते हैं, वे हमारे लिए पुष्य नक्षत्र के पूरक बनकर अनुकूल फलदायी हो जाते हैं | ‘सर्वसिद्धिकर: पुष्य: |’ इस शास्त्रवचन के अनुसार पुष्य नक्षत्र सर्वसिद्धिकर है | पुष्य नक्षत्र में किये गए श्राद्ध से पितरों को अक्षय तृप्ति होती है तथा कर्ता को धन, पुत्रादि की प्राप्ति होती है |
🚩 इस योग में किया गया जप, ध्यान, दान, पुण्य महाफलदायी होता है परंतु पुष्य में विवाह उससे संबधित सभी मांगलिक कार्य वर्जित हैं | (शिव पुराण, विद्येश्वर संहिताः अध्याय 10)
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