10 जुलाई 2025 | गुरुवार | गुरुपूर्णिमा और गुरु पूजन विशेष 🛕🚩

♈ दिनांक – 10 जुलाई 2025
♉ दिन – गुरूवार
♊ विक्रत संवत 2082 (गुजरात-महाराष्ट्र अनुसार 2081)
♋ शक संवत -1947
♌ अयन – दक्षिणायन
♍ ऋतु – वर्षा ॠतु
♎ मास – आषाढ
♏ पक्ष – शुक्ल
♐ तिथि – पूर्णिमा 11 जुलाई रात्रि 02:06 तक तत्पश्चात प्रतिपदा
♑ नक्षत्र – पूर्वाषाढा 11 जुलाई प्रातः 05: 56 तक तत्पश्चात उत्तराषाढ़ा
♒ योग – इन्द्र रात्रि 09:38 तक तत्पश्चात वैधृति
♓ राहुकाल – दिन 13:55 से अपराह्न 15:38 तक
🌞 सूर्योदय -05:20
🌚 सूर्यास्त -19:03
❌ दिशाशूल – दक्षिण दिशा मे
🛕 व्रत पर्व विवरण – व्रत पूर्णिमा, आषाढी पूर्णिमा, व्यास पूर्णिमा, गुरू पूर्णिमा, संयासी चतुर्मास आरंभ
💥 विशेष – पूर्णिमा एवः व्रत के दिन स्त्री-सहवास तथा तिल का तेल खाना और लगाना निषिद्ध है। (ब्रह्मवैवर्त पुराण, ब्रह्म खंडः 27.29-38)

🛕 गुरु पूजन
🚩 गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः |
गुरुर्साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः ||
ध्यानमूलं गुरुर्मूर्ति पूजामूलं गुरोः पदम् |
मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा ||
अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् |
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ||
त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधुश्च सखा त्वमेव |
त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव ||
ब्रह्मानंदं परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं |
द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्त्वमस्यादिलक्षयम् ||
एकं नित्यं विमलं अचलं सर्वधीसाक्षीभूतम् |
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि ||
🚩 ऐसे महिमावान श्री सदगुरुदेव के पावन चरणकमलों का षोड़शोपचार से पूजन करने से साधक-शिष्य का हृदय शीघ्र शुद्ध और उन्नत बन जाता है | मानसपूजा इस प्रकार कर सकते हैं |
🚩 मन ही मन भावना करो कि हम गुरुदेव के श्री चरण धो रहे हैं … सर्वतीर्थों के जल से उनके पादारविन्द को स्नान करा रहे हैं | खूब आदर एवं कृतज्ञतापूर्वक उनके श्रीचरणों में दृष्टि रखकर … श्रीचरणों को प्यार करते हुए उनको नहला रहे हैं … उनके तेजोमय ललाट में शुद्ध चन्दन से तिलक कर रहे हैं … अक्षत चढ़ा रहे हैं … अपने हाथों से बनाई हुई गुलाब के सुन्दर फूलों की सुहावनी माला अर्पित करके अपने हाथ पवित्र कर रहे हैं … पाँच कर्मेन्द्रियों की, पाँच ज्ञानेन्द्रियों की एवं ग्यारहवें मन की चेष्टाएँ गुरुदेव के श्री चरणों में अर्पित कर रहे हैं …
🚩 कायेन वाचा मनसेन्द्रियैवा बुध्यात्मना वा प्रकृतेः स्वभावात् |
करोमि यद् यद् सकलं परस्मै नारायणायेति समर्पयामि ||
🚩 शरीर से, वाणी से, मन से, इन्द्रियों से, बुद्धि से अथवा प्रकृति के स्वभाव से जो जो करते हैं वह सब समर्पित करते हैं | हमारे जो कुछ कर्म हैं, हे गुरुदेव, वे सब आपके श्री चरणों में समर्पित हैं … हमारा कर्त्तापन का भाव, हमारा भोक्तापन का भाव आपके श्रीचरणों में समर्पित है |
🚩 इस प्रकार ब्रह्मवेत्ता सदगुरु की कृपा को, ज्ञान को, आत्मशान्ति को, हृदय में भरते हुए, उनके अमृत वचनों पर अडिग बनते हुए अन्तर्मुख हो जाओ … आनन्दमय बनते जाओ …
ॐ आनंद ! ॐ आनंद ! ॐ आनंद !

🕉️🛕🚩 डॉ० बिपिन पाण्डेय, सहा० आचार्य ,ज्योतिर्विज्ञान विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय📱8756444444

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